धान की फसल में लग सकते है रोग, जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताए बचाव के उपाय

धान की फसल में लग सकते है रोग, जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताए बचाव के उपाय

सनशाइन समय बस्ती से मनीष मिश्र की रिपोर्ट

बस्ती। खरीफ मौसम में हो रहे बदलाव बारिश व तापमान में उतार चढ़ाव के कारण धान में रोग लग सकते है। उक्त जानकारी देते हुए जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया कि बैक्टीरियल ब्लाईट (झुलसा व बैक्टीरियल स्टीक रोग में नहरी व सिंचित खेत की अवस्था में धान की पत्ती नोंक की तरफ से किनारे से अन्दर की तरफ पीली पड़ लहरदार होकर सूखने लगती है तथा पुआल जैसे दिखने लगती है। बैक्टीरियल स्टीक में सुबह के समय पत्तियाँ खून की तरह लाल दिखती है। उन्होने बताया कि इस रोग से बचाव हेतु 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन तथा 500 ग्राम कापर आक्सीक्लोराईड 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें।
उन्होने बताया कि शीथ ब्लाइट व शीथराट रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे बनते है, जिनका किनारा गहरा भूरा तथा बीच का भाग हल्के रंग का होता है। शीथराट में उपरोक्त के अलावा पूरा शीथ प्रभावित हो जाता है तथा सड़ने लगता है। उन्होने बताया कि इस रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रति0 डब्लू0पी0 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर या हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ईसी 500 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें।
इसी प्रकार झोंका रोग, धान का यह अत्यन्त विनाशकारी रोग है, जिससे पत्तियों व उनके निचले भागों पर आंख के आकार के छोटे धब्बे बनते है, जो बाद में बढ़कर नाव की तरह हो जातें है। रोग के लक्षण, सर्वप्रथम पत्तियों पर तत्पश्चात पर्णच्छद, गांठो आदि पर दिखतें है। यह फंफूदजनित रोग पौधों की पत्तियों, गाठों एवं बालियों के आधार को भी प्रभावित करता है। इसमें धब्बों के बीच का भाग राख के रंग का तथा किनारें कत्थई रंग के घेरे की तरह होते है, जो बढ़कर कई से०मी० बड़े हो जातें है। इस रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 50 प्रति0 डब्लू0पी0 500 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल पर करें।
इसी प्रकार भूरा धब्बा रोग में पत्तियों पर गोल, अण्डाकार गहरे कत्थई धब्बे बीच में पीलापन लिये कत्थई तथा किसारों पर पीला घेरा लिए होते है। इसके उपाय थीरम 80 प्रतिशत 02 कि०ग्रा० या थायोफिनेट मिथाईल 1.5 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
उन्होने बताया कि रोगों से बचाव हेतु खेल में जल जमाव न होने दे. नाइट्रोजन उर्वरकों (यूरिया आदि) का सन्तुलित मात्रा में प्रयोग करे, मेंड़ो की साफ-सफाई रखें, जिससे गंधी आदि कीटों का नियंत्रण किया जा सके। इसके अलावा धान में पोषक तत्वों की कमी से होने वाले दो रोग जो इस समय फसलों पर दिखाई दे रहे है जैसे-खैरा रोग में जस्ते की कमी से होने वाले इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती है, जिस पर बाद में कत्थई धब्बे पड़ जाते है। इस रोग के बचाव हेतु 5 कि०ग्रा० जिंक सल्फेट को 20 कि०ग्रा० यूरिया या 2.5 कि०ग्रा० बुझे चूने के 800 लीटर पानी के साथ मिलाकर 4-5 बार में छिड़काव करे।
सफेदा रोग में लौह तत्व (आयरन) की कमी से यह रोग नर्सरी में अधिक लगता है, नई पत्ती सफेद रंग की निकलती है, जो कागज के समान पड़कर फट जाती है। उपचार हेतु प्रति हेक्टेयर 5 कि०ग्रा० फेरस सल्फेट को 20 कि0ग्रा0 यूरिया या 2.50 कि०ग्रा० बुझे हुए चूने के 800 लीटर पानी में मिलाकर 2-3 छिड़काव फसल पर करें।

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