गुरूद्वारों में उल्लास से मनाया गया गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश पर्व

गुरूद्वारों में उल्लास से मनाया गया गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश पर्व

– गूंजा ‘गुरु ग्रंथ साहिब तेरी जय होवे’ का जयघोष, कीर्तन दरबार, गुरू के लंगर में उमड़ी आस्था

सनशाइन समय बस्ती से मनीष मिश्रा की रिपोर्ट

बस्ती । गुरु ग्रंथ साहिब के पहले प्रकाश पर्व के 419 वें दिवस पर गुरूद्वारा कम्पनी बाग और गुरूद्वारा गांधीनगर में कीर्तन दरबार और गुरू के लंगर का आयोजन किया गया। शनिवार को भोर से ही गुरूद्वारों में आम जनमानस और सिख संगत का गुरू चरणों में माथा टेकने वालों का तांता लगा रहा।
गुरु द्वारा कंपनी बाग में सबसे पहले केसरी निशान की सेवा सरदार सरबजीत सिंह मल्होत्रा परिवार की तरफ से की गई। गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा गुरु गोबिंद सिंह स्मृति चौक कंपनी बाग बस्ती में आयोजित कीर्तन दरबार में मगहर गुरूद्वारा साहेब के महान किर्तनीय रागी जत्था सिंह साहेब ने ‘गुरु ग्रंथ साहिब तेरी जय होवे’ एवम ‘बानी गुरु गुरु है बानी विच बनी अमृत सारे बानी’ कहे सेवक जाने माने परतख गुरु निस्तारे । अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब ऐसा ज्ञान का भंडार है जिस से ईश्वर वाहेगुरु का सिमरन करने से मन को शांति मिलती है गुरु ग्रंथ साहिब का बहुत ही सत्कार और सम्मान है ।
गुरु ग्रंथ साहिब के चरणों में उपस्थित पूर्वांचल सिख वेलफेयर सोसायटी के प्रदेश संयोजक सरदार जगबीर सिंह ने कहा गुरु ग्रंथ साहब के आगे माथा टेकने के बाद ही किसी अच्छे कार्यक्रम की शुरुआत होती है गुरु ग्रंथ साहिब की रचना पांचवे गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी ने 1604 में दरबार साहिब अमृतसर में की तब पहला प्रकाश पर्व मनाया गया था । 419 वर्ष हो गए गुरु ग्रंथ साहिब पहला प्रकाश पर्व मनाते हुए इस पावन पवित्र ग्रंथ में गुरु अर्जन देव जी महाराज ने भारत के विभिन्न भागों में अकाल पुरख की भक्ति कर रहे उन भक्तों की वाणी का संकलन किया जिन्हों ने संपूर्ण मानव जाति को शांति आपसी भाई चारे विनम्रता तथा सेवा सिमरन का संदेश देकर धर्म के मार्ग पर चलने के लिय प्रेरित किया । इससे यह स्पष्ट है गुरु ग्रंथ साहब केवल एक क्षेत्र एक धर्म का पवित्र ग्रंथ नहीं है बल्कि सारी मानवता को संप्रदाय एकता विश्व शांति का उपदेश देने वाला सर्व सांझा ग्रंथ है ।


बताया कि इस गुरु ग्रंथ साहिब में36 महापुरषों की वाणी है । इस गुरुग्रंथ साहिब में जहा राम रहीम भगवान ईश्वर महादेव कृष्ण शब्द आय है वही अल्लाह खुदा परवदगार आदि के शब्द आए हैं वाहेगुरु बहुत कम बार आया है । किसी भी धर्म किसी भी देश के मनुष्य को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी से अपने एक प्रश्न का उपयुक्त उत्तर जरूर मिलता है जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज इस दुनिया की अपनी यात्रा समाप्त कर अकालपुरख के देश जाने के लिए तैयार हुए उन्होंने अपनी कोम को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के साथ जोड़ने का पवित्र कार्य शुरू किया और श्री गुरु ग्रंथ साहब जी को हमेशा के लिए शाश्वत गुरु बनाने का यह अलौकिक और चमत्कारी कार्य 1708 में नांदेड़ अब हजूर साहब महाराष्ट्र में किया गया था गुरु साहब जी ने आदेश दिया कि आज से आपको शब्द गुरु श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को अपने गुरु के रूप में स्वीकार करना होगा और वह हमेशा के लिए अटल गुरु है और कहा:आज्ञा पेई अकाल की तभी चलाओ पंथ, सब सिखन को हुक्म है गुरु मानियो ग्रंथ ’’।


कार्यक्रम के आयोजक मुख्य सेवादार सरदार हरी सिंह, बबलू दिलज्योत सिंह, दिव्यजोत सिंह रहे । इनके परिवार की तरफ से गुरु के लंगर की सेवा भी की गई । गुरुद्वारा गांधी नगर में आयोजित कार्यक्रम के आयोजक सरदार जगदीप सिंह, सरबजीत सिंह सरदार स्टेशन री परिवार वाले रहे गुरु के लंगर की सेवा सतपाल सिंह सुरेंद्र सिंह नरेंद्र सिंह परिवार की तरफ से रही अन्त में गुरु द्वारा साहिब के ग्रंथीगण ज्ञानी गुरजीत सिंह एवं ज्ञानी प्रदीप सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब के आगे अरदास प्रार्थना कर सब के जीवन की सकुशल कामना की ।
कार्यकर्म को सफल बनाने में कुलदीप सिंह, प्रभु प्रीत सिंह, बाबी परमजीत सिंह, अमरीक सिंह, हरभजन सिंह, जगजीत सिंह, अमृत पाल सिंह, रविंदर पाल सिंह, त्रिलोचन सिंह, बलजीत सिंह, सरबजीत सिंह मल्होत्रा, सत्येंद्र सिंह, राजा गगनदीप सिंह, कुलविंदर सिंह जेम्स, चरणजीत सिंह, सेंकी सिंह, साहिब सिंह, अमरजीत सिंह, बाबू सतनाम सिंह, दमन प्रीत सिंह, इंद्रपाल सिंह प्रीतम सिंह, तरनजीत सिंह, राजा हरदीप सिंह, हर्ष कालरा, ओम प्रकाश, जयप्रकाश गुरमुख सिंह आदि शामिल रहे।

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